Saturday, August 29, 2020

सोहगीबरवा वन्य जीवन अभयारण्य










@maharajganj_official


 महाराजगंज निर्मल और शांत वातावरण वाला एक विचित्र जिला है और सुरम्य इलाके द्वारा बिंदीदार सुरम्य इलाका एक वास्तविक वर्णन है। वन्यजीव अभ्यारण्य गोरखपुर से 56 किमी और महराजगंज से 50 किमी की दूरी पर स्थित है । सोहागी बरवा वन्यजीव अभयारण्य में निवास करने वाले जीव जैसे बाघ, तेंदुआ, चीतल, भालू, जंगली बिल्ली, जंगली सूअर, अजगर, आदि है ।


सोहगीबरवा वन्य जीवन अभयारण्य, 1987 में पुराने गोरखपुर फ़ॉरेस्ट डिवीजन से घिरा हुआ, उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में स्थित है । अभयारण्य के, राज्य के सीमा क्षेत्र पर, उत्तर में अंतर्राष्ट्रीय भारत-नेपाल सीमा है और अंतर्राज्यीय यू.पी. - बिहार की सीमा पूर्व की ओर है ।

इस अभयारण्य को वर्ष 1987 में प्रतिष्ठित ओल्ड गोरखपुर वन प्रभाग के उत्तरी भाग से तराश कर बनाया गया है ।

वहाँ कैसे पहुँचे
यह गोरखपुर से सड़क मार्ग से जाने योग्य है जो 56 किलोमीटर की दूरी पर है ।

आगंतुक आकर्षण
अभयारण्य में अन्य सुरम्य स्थानों में नागवा और सोनारी ब्लॉक में कई तालाब / झीलें शामिल हैं और मढ़ौलिया और लछमीपुर रेंज में महत्वपूर्ण घास के मैदान हैं । सभी के बीच सबसे लोकप्रिय सिंगरहना ताल, अभयारण्य का गौरव है ।

सुरम्य इलाक़े
बहती धाराएँ
बाघ
तेंदुआ
जंगली सूअर

महराजगंज जिले से जुड़ी जानकारी

 महराजगंज जनपद के अड्डा बाजार के समीप स्थित बनसिहा- कला में 88.8 एकड़ भूमि पर एक नगर, किले एवं स्तूप के अवषेष उपलब्ध हुए हैं।

 लगभग 35 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले, इस जगह पर कई टीलें, स्तूप और तालाब आदि स्थित है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक प्राचीन शिवलिंग और एक चतुरभुर्जी मूर्ति भी स्थित है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है। कुछ लोग इसे वीरगाथा काव्य के नायक आल्हा-उदल के परमहितैषी, सैयदबरनस के किले के रूप में भी मानते हैं। कई पुरातत्वविद् इसे देवदह भी मानते हैं।

 बौद्धगंथों में भगवान गौतम बुद्ध की माता महामाया, मौसी महाप्रजापति गौतमी एवं पत्नी भद्रा कात्यायनी (यषोधरा) को देवदह नगर से ही सम्बन्धित बताया गया है। 1992 में डॉ॰ लाल चन्द्र सिंह के नेतृत्व में किये गये प्रारम्भिक उत्खनन से यहां टीले के निचते स्तर से उत्तरी कृष्णवणीय मृदमाण्ड (एन.बी.पी.) पात्र- परम्परा के अवषेष उपलब्ध हुए हैं गोरखपुर विष्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ॰ सी.डी.चटर्जी ने देवदह की पहचान बरसिहा कला से ही करने का आग्रह किया।










सोहगीबरवा वन्य जीवन अभयारण्य

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